कहानी:एक ट्रेन यात्रा के सहारे मनुष्य की स्थितियां और उसके आत्मकेंद्रित स्वभाव को दर्शाती कहानी 'तनाव'
- एक ट्रेन चल रही है। एक व्यक्ति ट्रेन से अपने बीमार पिता को देखने जा रहा है। तभी एक हादसा होता है, जिसकी वजह से ट्रेन को रुककर पीछे लौटना पड़ता है।
- इस फेर में देरी हो जाती है। ट्रेन के यात्री हादसे को लेकर निरपेक्ष हैं और अपने मामूली और फ़ौरी हितों की फ़िक्र में डूबे हैं।
- इस कहानी के माध्यम से —एक चलती रेलगाड़ी में मनुष्य की जीवन-स्थितियों और उसके आत्मकेंद्रित स्वभाव का एक रंगमंच सजीव हो उठता है...
भोपाल से बहन का फोन आया। उसकी आवाज़ में घबराहट थी। उसने बस इतना ही कहा, फ़ौरन चले आओ। पिताजी की तबीयत काफी ख़राब है। कभी भी कुछ हो सकता है। नब्बे साल के पिता को देखे एक साल हो चुका था। मन में बुरे-बुरे ख़्याल आने लगे, पता नहीं क्या होगा। इधर रायपुर में बड़ी मुश्किल से तो एक कंपनी में नौकरी मिली थी। साल भर से उसी में लगा रहा। भोपाल जाने का समय ही नहीं मिला। लेकिन जब बहन का फोन आया तो मुझे लगा कि जाना चाहिए। कई बार अशुभ समाचार सीधे-सीधे नहीं कहे जाते, लेकिन पंक्तियों के बीच के संदेश को समझना पड़ता है। मुझे भी आशंका हुई कि कोई बुरी ख़बर है, जो बहन सीधे-सीधे नहीं कह रही है। बड़ी मिन्नतों के बाद चार दिन की छुट्टी मिली। तत्काल में रिज़र्वेशन कराया और भोपाल के लिए रवाना हो गया। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में जगह मिली। ट्रेन काफ़ी स्लो है लेकिन सुबह नौ-दस बजे तक तो पहुंचा ही देगी, यह सोचकर रिज़र्वेशन करवा लिया। एसी में तो जगह ही नहीं थी, सेकंड क्लास में एक बर्थ मिल गई। गनीमत है मिल ही गई वरना जनरल बोगी में सफ़र करना पड़ता। ट्रेन शाम को चार बजे रायपुर से छूटी मगर चार घंटे बाद अचानक रास्ते में कहीं रुक गई। बोगी के भीतर बैठे दो सिपाही तेजी के साथ दौड़ते हुए ‘इंटरकनेक्ट’ बोगी की ओर निकल गए। शायद कोई अपराधी पकड़ में आ गया हो। यात्रियों ने ट्रेन से झांकना शुरू किया। आठ बज चुके थे। तब तक तो बाहर घुप्प अंधेरा पालथी मारे बैठ गया था। मैंने घड़ी की ओर नजऱ फेंकी। आठ बज चुके थे। अंदाज़ लगाया गोंदिया का आउटर होगा। मैं एक किताब पढ़ने लगा। पांच-दस मिनट तक तो सब-कुछ सामान्य-सा चलता रहा लेकिन धीरे-धीरे ट्रेन के बाहर लोगों की हलचल कुछ तेज़ होती गई। तरह-तरह की आवाज़ें कानों तक पहुंचने लगीं- कोई लड़की गिर गई है। - कैसे? - दरवाजे के सामने बैठी थी। नींद का झोंका आया और... कोई कह रहा था, खंभे से टकरा गई। लेकिन लड़की गिरी है, यह तय है। बोगी के लोग नीचे उतरने लगे। मुझसे भी रहा न गया। मैं भी भीड़ का हिस्सा बन गया। ट्रेन आमगांव के पास कहीं खड़ी है, ऐसा एक जानकार ने बताया। - पीटीएस (पुलिस ट्रेनिंग स्कूल) ने माना कि कोई लड़की खंभे से टकराकर गिर गई है। उसकी लाश ढूंढने के लिए कुछ सिपाही पीछे गए। बीस-पच्चीस मिनट ऐसे ही निकल गए। अचानक ट्रेन ने सीटी दी। सब ट्रेन में सवार हो गए। अब ट्रेन पीछे जा रही थी। एक ने कहा, लड़की की डेड बॉडी नहीं मिली इसलिए ट्रेन को पीछे ले जा रहे हैं। लगभग चार किलोमीटर के बाद ट्रेन रुकी। हम लोग नीचे उतर गए। गांव के लोग भी जमा हो गए। लाश का पता नहीं चल रहा था। ट्रेन एक बार फिर दो किलोमीटर पीछे हुई। नौ बज चुके हैं। पता नहीं कितना वक़्त लगेगा। मैं भी तनावग्रस्त हो गया। चाहता था, ट्रेन समय पर भोपाल पहुंच जाए, लेकिन अब तो लगातार विलंब हो रहा है। मगर मैं भी दूसरे यात्रियों की तरह लाचार था। भोपाल जा रहे एक मंत्रीजी भी चहलक़दमी के लिए एसी से नीचे उतर आए। मंत्री को देख एक आदमी ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, यह क्या तमाशा है। बार-बार ट्रेन को पीछे किया जा रहा है। भूख-प्यास से हम लोग परेशान हो रहे हैं। पुलिस विभाग की लड़की थी इसलिए ट्रेन को रिवर्स कर रहे हैं। हम लोगों में से किसी के साथ ऐसा हुआ होता तो क्या ट्रेन पीछे जाती? मंत्रीजी ने उसे समझाया, थोड़ी ही देर की तो बात है, बंधु। इतने परेशान क्यों हो रहे हो?’’ - वाह, क्यों न हों परेशान? भूख-प्यास से बुरा हाल हुआ जा रहा है। नागपुर भी जल्दी पहुंचना है। मंत्रीजी ने अपने पीए को आवाज़ दी, सुनो पांडेय, इस आदमी को खाना खिलाओ भई! यात्री का बड़बड़ाना जारी था, तमाशा बनाकर रख दिया है देश को... एक पुलिस वाली के लिए ट्रेन आगे-पीछे कर रहे हैं... अरे, मर गई तो मर गई। रेलवे ने ठेका लिया है क्या सबका? मंत्री ने मुसकराते हुए कहा, चुनाव लड़ने का इरादा है क्या? तुम तो हम लोगों की भी छुट्टी कर दोगे। - आपकी छुट्टी तो अब किन्नर लोग ही करेंगे... यात्री धीरे-से बुदबुदाया और आगे बढ़ गया। कुछ लोग जो उसके विरोधी तेवर से सहमत थे, वे सब उसके पीछे-पीछे हो लिए। मेरे पास वाली बर्थ में बैठा युवक दौड़ते हुए मेरे पास आया। वह कुछ घबराया हुआ लग रहा था। वह मुझे पहचानता था। पत्रकार हूं, यह भी उसे मालूम था। - सुना आपने? गज़ब हो गया। - क्या हो गया? - लड़की की डेड बॉडी को इसी बोगी में रखा जाएगा। - तुमसे किसने कहा? - लोग कह रहे हैं। अब आप ही बताइए, हम लोग खाना कैसे खाएंगे? पूरी फ़ैमिली परेशान हो रही है। - चिंता मत करो। इस बोगी में लाश नहीं रखी जाएगी। उसे गार्ड के डिब्बे में रखा जाएगा या फिर अलग से मोटर में ले जाएंगे। - लेकिन बोगी वाले तो...? - तुम लोग खाना खाओ। चिंता मत करो। मैं देखता हूं। युवक को टालने की ग़रज़ से मैंने यूं ही कह दिया। बोगी के अंतिम छोर पर बैठे चार-पांच युवक अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए शराब पीने में मगन थे। एक शराबी नीचे उतरकर मेरे पास आया- क्यों भाई साहब, डेड बॉडी मिली क्या? - नहीं। - मतलब गाड़ी अभी कुछ देर और रुकेगी न? - हां, क्यों? - सोच रहे थे, बोतल यहीं खाली कर लें। पुलिस वाले भी डेड बॉडी की तलाश में निकल गए हैं। कोई ख़तरा नहीं है। नागपुर में आराम से खाना खाएंगे। आप भी शौक़ फरमाते हैं तो, चलें...! मैं चुप रहा। मन-ही- मन सोच रहा था, पता नहीं कितनी देर लगेगी... क्या होगा। मुझे ख़ामोश देखकर वह लौट गया। थोड़ी देर तक चहल-कदमी के बाद मंत्रीजी अपने कूपे में चले गए। मैं भीड़ की इकाई बना दूर अंधेरे की ओर निहारता रहा। - आपको क्या लगता है, पृथक विदर्भ राज्य बन जाएगा? छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड तो बन ही गया है। पास ही खड़े चार लोगों ने अचानक नया टॉपिक उठा लिया। - बनाना तो पड़ेगा ही वरना जनता दौड़ा-दौड़ा कर पीटेगी। - अब तो विंध्य और महाकोशल की मांग भी उठने लगी है। - पता नहीं मध्यप्रदेश के कितने टुकड़े होंगे। लेकिन एक बात तो तय है कि छोटे-छोटे राज्य बन जाएं, तो उसका विकास तेज़ी के साथ होता है। देख लो, छत्तीसगढ़ ने कितनी तरक्की कर ली। - लेकिन झारखंड तो पिछड़ गया। वहां भ्रष्टाचार ने पैर पसार लिए हैं। - अरे, भ्रष्टाचार कहां नहीं है। पूरी दुनिया में है। डेड बॉडी का क्या हुआ यार? तमाशा हो गया है। - डेड बॉडी अब तक नहीं मिली। ग्यारह बज रहे हैं। - आख़िर गई कहां? - कुछ समझ में नहीं आ रहा। अंधेरे में कहीं पड़ी होगी। ढूंढने तो समय लगता ही है। - एक के कारण सब परेशान हो गए। - ठीक कहते हो। तभी बोगी वाला युवक मुस्कराते हुए मेरे पास आया, आप ठीक कह रहे थे। डेड बॉडी अपनी बोगी में नहीं रखी जाएगी। हम लोग अब खाना खा रहे हैं। आप भी आइए न! - धन्यवाद! मुझे भूख नहीं है। युवक चला गया। ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने वाले यात्री की आवाज़ फिर सुनाई देने लगी- मैं रेलवे की ईंट-से-ईंट बजा दूंगा। महाराष्ट्र बंद करवा दूंगा। मेरी तो ट्रेन ही छूट जाएगी। एक डेड बॉडी के लिए सैकड़ों लोगों को तंग किया जा रहा है। अजीब देश है। चलिए, नारेबाज़ी करें, तभी ट्रेन आगे बढ़ेगी। उसकी बातें सुनकर लोग मंद-मंद मुस्करा रहे थे। किसी की प्रतिक्रिया न पाकर वह आगे बढ़ गया। - ग़लती लड़की की थी। वह दरवाजे़ के पास बैठी ही क्यों? यह दूसरा समूह था। ‘कोल्ड ड्रिंक्स’ पीते हुए बतिया रहा था। - उसका ‘रिज़र्वेशन’ तो था न? - पता नहीं। रहा भी होगा तो क्या? आजकल की लड़कियों की तो बात ही निराली है। - हो सकता है, रिज़र्वेशन ही न मिला हो बेचारी को? - अरे साहब, मैं अच्छे से जानता हूं इन महिला सिपाहियों को। रिज़र्वेशन के बावजूद स्टाइल मारने के लिए दरवाजे़ पर बैठकर सफ़र करती हैं। - छोड़ो यार, अब बेचारी मर गई तो उसकी बुराई क्यों करना! सोचो, उसके मां-बाप होंगे, उन पर क्या बीत रही होगी। - हां यार, होनी को कौन टाल सकता है। - लेकिन एक के लिए इतने सारे यात्रियों को परेशान करना कहां का न्याय है? यह एक प्रौढ़ व्यक्ति की आवाज़ थी। - यह हमारे यहां का न्याय है! अचानक एक बुज़ुर्ग सज्जन उत्तेजित हो गए- अरे, एक लड़की मर गई और हम उसके लिए थोड़ी-सी परेशानी भी नहीं उठा सकते? किसी के घर का चिराग़ बुझ गया और आप को अपनी पड़ी है? - आप ठीक कहते हैं। पीछे से एक आवाज़ आई- ‘वह लड़की शायद किसी की मां हो, किसी की पत्नी हो। भई, हमारी करुणा नहीं मरनी चाहिए। हम लोग और कुछ तो कर नहीं सकते, कम के कम उसकी डेड बॉडी को तो सम्मान दे ही सकते हैं। कल को हममें से किसी के साथ ऐसा हादसा हो गया तो? - मुसीबत कभी भी आ सकती है। किसी भी रूप में। - हमेशा सबका भला सोचना चाहिए। ट्रेन ने फिर सीटी दी। लोग दौड़कर बोगी में सवार हो गए। -क्या डेड बॉडी मिल गई? -पता नहीं। ट्रेन आगे जा रही है मतलब मिल ही गई होगी। एक युवक ने बताया- लड़की का सिर खंभे से टकराया और भेजा जनरल बोगी में आकर गिरा। वहां चीख-पुकार मच गई थी। - बाप रे!!! - हां। - सचमुच, लोग तो बुरी तरह घबरा गए होंगे। एक ने हंसते हुए कहा, ‘पहले तो किसी की समझ में ही नहीं आया होगा कि आख़िर ये है क्या चीज़। उसकी बात सुनकर कुछ लोग मुस्करा उठे। - अपने टाइप की अजीब घटना है। चलो, अपन तो शुरू करें। वे रमी खेलने लगे। दोनों सिपाही भी वापस आ गए। उनके चेहरे के तनाव के पाठ का एक अंश आसानी से पढ़ा जा सकता था। - क्यों भई, क्या हुआ? - डेड बॉडी मिली? - हां, बड़ी मुश्किल से। - कहां रखी है? - मंत्रीजी ने लड़की के गांव भिजवाने की व्यवस्था करवा दी है। - वाह! यह तो बहुत अच्छा हो गया। वरना जिस बोगी में रखी जाती, वहां के लोगों का तो खाना-पीना हराम हो जाता। - लेकिन लड़की गिरी कैसे? - अब कैसे बताएं, सिपाही थोड़ा तनाव में आ गया- होनी थी सो हो गई, बस्स! धीरे-धीरे अधिकांश यात्रियों ने खाने के पैकेट्स खोल लिए। सिपाहियों को आता देख शराबी युवकों ने बोतलें खिड़की के बाहर फेंक दी। बड़बड़ करने वाला यात्री बीड़ी फूंकते हुए ख़ामोश बैठा था। सोलह नंबर बर्थ वाली बूढ़ी महिला भोजन करने के बाद राम नाम का जप कर रही थी। उसकी जवान बेटी ईयर फोन लगाकर मोबाइल में किसी फ़िल्मी धुन पर धीरे-धीरे सिर हिला रही थी। मैं अपनी कि़ताब में खो गया। लेकिन फिर पढ़ने का मन नहीं हुआ, तो लगा अब सोना चाहिए। तभी दोनों सिपाही अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। एक ने तम्बाकू मलते हुए कहा- अच्छा हुआ शंभू, हम लोग डेड बॉडी ले जाने की ड्यूटी से बच गए। - लेकिन वर्मा तो फंस गया। दोनों हंस पड़े। अब हर कोई तनाव से मुक्त था। ट्रेन पूरी गति के साथ दौड़ी चली जा रही थी। हर कोई तनाव मुक्त था लेकिन मैं नहीं। समझ गया था कि ट्रेन दोपहर एक-दो बजे तक ही भोपाल पहुंच पाएगी। पता नहीं पिताजी किस हाल में होंगे। खाना खाने का मन बिल्कुल नहीं हुआ। बस, पानी पीकर चुपचाप लेट गया।
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